उर्द
उन्नत किस्में
प्रजाति |
पकने की अवधि | औसत उपज (दिन) कु/है. |
पर्वतीय एवं तराई-भावर | ||
पन्त उर्द 19 | 75-80 | 12-15 |
पन्त उर्द 35 | 75-80 | 12-15 |
नरेन्द्र उर्द 1 (जायद) | 75-80 | 12-15 |
मैदानी क्षेत्र | ||
आजाद उर्द 1 | 75-80 | 10-12 |
उत्तरा | 75-80 | 12-15 |
केयूजी 749 (जायद) | 70-75 | 10-12 |
शेखर 1 (हरा दाना) | 80-85 | 12-15 |
शेखर 2 (हरा दाना) | 80-85 | 10-12 |
मैदानी एवं निचली पहाड़ी क्षेत्रों के लिए | ||
पन्त उर्द 31 (खरीफ एवं जायद) | 70-75 | 12-15 |
पन्त उर्द 40 (सहफसली) | 75-80 | 12-15 |
बुवाई का समय
पर्वतीय क्षेत्र की घाटियाँ - जून का द्वितीय पखवाड़ा
तराई-भावर एवं मैदानी क्षेत्र-जुलाई के तीसरे सप्ताह से अगस्त का प्रथम सप्ताह
नोटः जायद में बुवाई का उपयुक्त समय मार्च का प्रथम पखवाड़ा है। जहाँ खेत खाली हो वहाँ फरवरी के अंतिम सप्ताह में भी बुवाई की जा सकती है।
बुवाई की विधि
बुवाई पंक्ति में हल के पीछे करें। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30-45 से.मी. होनी चाहिए। बुवाई 3-4 से.मी. गहरी होनी चाहिए। जायद में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20-25 से.मी. रखना चाहिए।
बीज की मात्रा
खरीफ में 12-15 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर।
जायद में 30-35 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर।
उर्वरकों का प्रयोग
उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करना चाहिए। यदि परीक्षण की सुविधा उपलब्ध न हो तो 15-20 कि.ग्रा. नत्रजन तथा 40-50 कि.ग्रा. फास्फोरस प्रति हैक्टर प्रयोग करना चाहिए। उर्वरकों की सम्पूर्ण मात्रा अंतिम जुताई के समय हल के पीछे कूॅडों में प्रयोग करें। फास्फोरस की मात्रा सिंगल सुपर फास्फेट के रुप में प्रयोग करने पर सल्फर की आवश्यकता की भी पूर्ति हो जाती है।
बीज उपचार
थीरम 2 ग्रा. एवं कार्बेन्डाजिम 1.0 ग्रा./ कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करके बीज बोयें।
राइजोबियम से बीजोपचार
राइजोबियम कल्चर उड़द, मूँग एवं अन्य दलहनी फसलों को वायुमण्डलीय नत्रजन उपलब्ध कराने में सहायता करता है। कल्चर की लगभग 200 ग्रा0 मात्रा का एक पैकेट 10 कि.ग्रा. बीज को उपचारित करने के लिए पर्याप्त होती है। बीज को स्वच्छ पानी से हल्का नम कर कल्चर को बीज के साथ अच्छी प्रकार से मिला दें जिससे बीज के ऊपर कल्चर की एक समान परत चिपक जाये। कल्चर को बीज के उपर चिपकाने के लिए 10 प्रतिशत गुड़ चीनी का घोल भी उपयोग में लाया जा सकता है। बीजोपचार के पश्चात् बीज को थोड़ी देर छाया में सुखाकर तुरन्त बुवाई कर देनी चाहिए।
निराई-गुड़ाई
बुवाई के बाद तीसरे या चैथे सप्ताह में पहली निराई-गुड़ाई तथा आवश्यकतानुसार दूसरी निराई गुड़ाई 40-50 दिन बाद करनी चाहिए। घास तथा चैड़ी पत्ती वाले खरपतवारों को रासायनिक विधि से नष्ट करने के लिए पेंडिमिथलीन 30 ई.सी. 1 कि.ग्रा./ है. मात्रा को 500-600 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के तुरन्त बाद जमाव से पूर्व छिड़काव करें।
सिंचाई
यह वर्षा ऋतु की फसल है। इसलिए इसमें अलग से सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है। जायद में 3-4 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई बुवाई के 25-30 दिन बाद तथा बाद में आवश्यकतानुसार 10-15 दिन बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिए।
कीट नियंत्रण
तना मक्खी: सूंडियों द्वारा तने को खोखला अथवा सुरंग बनाकर नुकसान पहॅुचाया जाता है। जिससे पौधे पीले पड़कर बाद में सूख जाते हैं। बुवाई के पूर्व बीज को इमिडाक्लोप्रिड का 3 मि.ली. अथवा डायमेथोएट 30 ई.सी. का 8 मि.ली./कि.ग्रा. की दर से उपचारित कर के बुवाई करें। मोनोक्रोटोफास / डाईमेथोएट /मिथाइल डिमेटान 1.0 मि.ली. प्रति लीटर पानी की दर से फसल जमाव के एक सप्ताह बाद छिड़काव करें।
बिहार रोमिल सूड़ी: सूडि़याँ पत्तियों को खाकर नुकसान पहॅुचाती है। ये काले भूरे रोयेंदार सूडि़याॅ होती है। प्रौढ़ कीट पत्तियों पर समूह में अंडे देते हैं। इसकी रोकथाम के लिए शुरु में पत्तियों पर दिये गये अंडों को नष्ट कर देना चाहिए। इसकी रोकथाम के लिए ट्रायजोफास 2.0 मि.ली. अथवा लैम्बडासाय हैलोथ्रिन 0.5-1.0 मि.ली./लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।
मत्कुण (वग्स), थ्रिप्स आदि: थ्रिप्स और मत्कुणकीट (बग्स) फूल और फली बनते समय कलिकाओं, पुष्पों और फलियों का रस चूसकर नुकसान पहूँचाते हैं। थ्रिप्स के नुकसान से फूल गिर जाते हैं। मत्कुणों के प्रकोप से दाने छोटे अथवा अविकसित होते हैं। इनकी रोकथाम हेतु मोनोक्रोटोफास/डायमेथोएट की 1.0-1.5 मि.ली./ली. पानी की दर से घोल बनाकर फसल के ऊपर फूल आते ही छिड़काव करें। मंडुवा, अरहर आदि के साथ सहफसली खेती करना भी उपयोगी होता है।
रोग नियंत्रण
उर्द का वैब ब्लाइट रोग |
![]() |
चने का ब्रोटाइटिस रोग |
![]() |
सर्कोस्पोरा धब्बा पर्ण रोग: पत्तियों पर गोलाई लिए हुए कोणीय धब्बे बनते हैं जिनमें बीच का भाग हल्के राख के रंग का या हल्का भूरा या सफेद रंग का हो जाता है तथा किनारे गहरे भूरे रंग के होते है। फलियों एवं तनों पर भी लक्षण दिखाई देते हैं। इसकी रोकथाम के लिए कापर आक्सीक्लोराइड या मेंकोजेब (0.2%) या कार्बेन्डाजिम (0.05%) या प्रोपेकोनाजोल (0.1%) का 700-800 ली. पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
उपज
संस्तुत सघन पद्धतियाँ अपनाकर 10-15 कुन्तल/हैक्टर पैदावार प्राप्त की जा सकती है।