तिल
उन्नत किस्में
घाटी वाले क्षेत्र (1000 मीटर) तथा तराई एवं भावर क्षेत्र के लिए निम्न प्रजातियाँ हैं।
प्रजातियाँ |
पकने की अवध |
उपज (कु./हैक्टर) |
टा-4 |
90-100 |
6-7 |
टा-12 |
85-90 |
5-6 |
टा-78 |
80-85 |
6-7 |
शेखर |
80-85 |
6-7 |
प्रगति |
85-90 |
7-8 |
बुवाई का समय एवं विधि
तिल की बुवाई का उचित समय जुलाई का दूसरा पखवाड़ा है। इससे पूर्व बुवाई करने से फाइलोडी रोग लगने का भय रहता है। इसकी बुवाई हल के पीछे लाइनों में 30 से 45 सेमी की दूरी पर करें। बीज को कम गहराई पर बोयें। तराई तथा भावर क्षेत्र में तिल की बुवाई जुलाई के दूसरे पखवाड़े में करना चाहिए।
बीज दर तथा शोधन
एक हैक्टर क्षेत्र के लिए 3-4 कि.ग्रा. बीज का प्रयोग करें। बीज जनित रोगों से बचाव हेतु 2.50 ग्रा. थीरम या कैप्टान प्रति किग्रा. बीज की दर से बीज शोधन करें।
उर्वरकों का प्रयोग
उर्वरकों का प्रयोग भूमि परीक्षण के आधार पर करें। यदि परीक्षण न कराया गया हो तो 30 कि.ग्रा. नत्रजन, 15 कि.ग्रा. फास्फोरस तथा 15 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करें। नत्रजन की आधी मात्रा एवं फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय बेसल ड्रेसिंग के रूप में तथा नत्रजन की शेष आधी मात्रा प्रथम निराई के समय प्रयोग करें।
निराई-गुड़ाई
बुवाई के 15-20 दिन के बाद पहली एवं 30-35 दिन बाद दूसरी निराई करनी चाहिए। निराई-गुड़ाई करते समय पौधों की थिनिंग (विरलीकरण) करके उनकी आपस की दूरी 10 से 12 से.मी. कर लें।
सिंचाई
जब पौधों में 50-60 प्रतिशत तक फली लग जाए और उस समय वर्षा न हो तो एक सिंचाई करना आवश्यक हैं।
कीट नियंत्रण
पत्ती व फल की संूड़ी: इसकी सूडि़याँ कोमल पत्तियों व फलियों को खाती है एवं इन्हें जाला बनाकर बाँध देती है।
उपचार: इस कीट की रोकथाम के लिए क्यूनालफास 35 ई.सी. के 1.5 ली./हैक्टर का छिड़काव करना चाहिए।
रोग नियंत्रण
तिल का फाइलोड़ी: यह रोग फाइटोप्लाज्मा द्वारा होता है। इस रोग में पौधों का पुष्प विन्यास एवं पत्तियाँ विकृत रूप में बदलकर गुच्छेदार हो जाती है। इस रोग का वाहक फुदका कीट है।
उपचार:
1.तिल की बुवाई समय से पहले न की जाय।
2. मिथाइल-ओ-डिमेटान (25 ई.सी.) 1ली./हैक्टर की दर से 10-15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए।
3. रोग ग्रस्त पौधों को जला देना चाहिये
फाइटोफ्थेरा झुलसा: इस रोग में पौधों के कोमल भाग व पत्तियाँ झुलस जाती है।
उपचार: इसकी रोकथाम हेतु मैकेाजेब 2.00 कि.ग्रा. या 3.00 कि.ग्रा. कापर आक्सीक्लोराइड का छिड़काव प्रति हैक्टर की दर से दो-तीन बार करना चाहिए।
उपज
उपरोक्त सघन पद्धतियाँ अपनाकर 5-6 कुन्तल/हैक्टर उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।