राजमा
उन्नत किस्में
प्रजाति | पकने की अवधि (दिन) | औसत उपज कु/है. |
तराई एवं भावर | ||
पी.डी.आर.14 (उदय) | 90-100 | 15-20 |
पर्वतीय क्षेत्र | ||
वी.एल.राजमा-63 | 120-140 | 12-15 |
बीज एवं बुवाई
समय-तराई एवं भावर -फरवरी का प्रथम पखवाड़ा (जायद में) अक्टूबर का दूसरा पखवाड़ा (रबी में)
पर्वतीय क्षेत्र-जून का द्वितीय पखवाड़ा (खरीफ में) बीज की मात्रा-75-80 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर
बुवाई की विधि-बुवाई 30 से.मी. की दूरी पर कतारों में करें तथा बुवाई के 15-20 दिन बाद पौधों की छंटाई करके पंक्तियों में पौधे से पौधे की दूरी 10 से.मी. कर दें।
बीज उपचार-थीरम 2 ग्रा. एवं कार्बेन्डाजिम 1 ग्रा./कि.ग्रा. बीज की दर से बीज उपचारित कर बोयें।
खाद एवं उर्वरक-गोबर की खाद- 4-5 टन/है0, नत्रजन- 80-100 कि.ग्रा./है0 फास्फोरस- 80 कि.ग्रा./है0, पोटाश-40 कि.ग्रा./है.
तराई एवं भावर क्षेत्रों में नत्रजन की मात्रा 80-100 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर को दो बार में प्रयोग करना चाहिए। 20 कि.ग्रा. गंधक देने से लाभकारी परिणाम मिले हैं।
निराई-गुड़ाई-खरपतवार नियन्त्रण
प्रथम निराई-गुड़ाई एवं पौधों की छंटाई बुवाई के 15-20 दिन बाद करें। आवश्यकतानुसार दूसरी निराई-गुड़ाई 35-40 दिन बाद करें।
सिंचाईः आवश्यकतानुसार खरीफ, रबी एवं जायद में बोई गई फसलों में फूल आते समय तथा फली बनते समय सिंचाई करें।
कीट नियन्त्रण
फली छेदक कीट से बचाव हेतु प्रोफेनाफास 50 ई.सी. की 2.0-3.0 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़कना चाहिए।
रोग नियन्त्रण
जड़ विगलन रोग: 2 ग्रा. थाइरम 1 ग्रा. कार्बेन्डाजिम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से बीज का शोधन करें। अंकुरण के 15-20 दिन बाद एवं फूल आरम्भ होने पर कार्बेन्डाजिम के 0.1 प्रतिशत घोल का जड़ों के आस-पास छिड़काव करें।
कोणीय पर्ण चित्ती रोग: मैंकोजेब के 0.2 प्रतिशत घोल अथवा कार्बेन्डाजिम के 0.1 प्रतिशत घोल बनाकर 4 से 5 छिड़काव करें।
एन्थ्रेक्नोज: कार्बेन्डाजिम अथवा थायोफिनेट मिथाइल के 600-800 ग्रा. दवा प्रति है0 की दर से 600-800 ली0 पानी में मिलाकर छिड़काव करें तथा आवश्यकता होने पर दूसरा छिड़काव 15 दिन बाद करें।
उपज
जब फसल पकने पर पौधा पीला पड़ जाता है तथा सभी पत्तियाॅ गिर जाती हैं तब इसकी कटाई करके मड़ाई कर लें तथा दानों को अच्छी तरह सुखाकर भण्डारण करें। संस्तुत सघन पद्धतियाॅ अपनाकर 12-15 कुन्तल/हैक्टर उपज प्राप्त की जा सकती है।