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रबी फसलों में खरपतवार नियंत्रण

               रबी खाद्यान्य की प्रमुख फसलों में गेहूँ एवं जौ, दलहनी फसलों में चना, मटर एवं मसूर, तिलहनी फसलों में सरसों एवं तोरिया के अलावा षर्करा फसलों में षरदकालीन गन्ने की खेती आमतौर पर की जा रही है। इन सभी फसलों से अच्छी उपज प्राप्त करने के लिये खरपतवारों का सही समय पर नियंत्रण करना आवष्यक होता है यदि खरपतवारों का सही समय पर, सही तौर तरीकों से नियंत्रण नहींे किया जाता है तो गेहूँ में 10-50, दलहनी फसलों में 30-60 तथा तिलहनी फसलों में 15-30 प्रतिषत तक की गिरावट आ जाती है।

               ये खरपतवार भूमि से नमी, पोशक तत्व तथा सौर्य उर्जा के लिए तो प्रतिस्पर्धा तो करते ही हैं साथ में यदि फसल ज्यादा सघनता में खरपतवारों से ग्रसित होती है तो कींट तथा बीमारियों का प्रकोप भी अधिक हो जाता है तथा उनके नियंत्रण हेतु अधिक व्यय करने से उत्पादन लागत में भी वृद्धि हो जाती है अन्ततः फसल लाभकारी नहीं हो पाती। रबी फसलों में विभिन्न प्रकार के खरपतवार उग जाते है जैसे-ः

               एक वर्शीय घासकुल के खरपतवार- इस प्रकार के खरपतवार एक बीज पत्रीय, गोलाकार तना, संकरी पत्ती वाले होते है तथा अंकुरित होकर एक वर्श या रबी मौसम मंे अपना जीवन चक्र पूर्ण कर लेते हैं जैसे- जंगली जई, गुल्ली डण्डा, पोआ एवं रानी घास आदि।

एक वर्शीय चैड़ी पत्ती कुल के खरपतवार- इस प्रकार के खरपतवारों की पत्तियाँ चैड़े आकार की होती है और इनका जीवन चक्र मात्र रबी मौसम तक रहता है। जैसे -ः बथुआ, जंगली मटर, अंकरी, संजी, जंगली जलेबी, कृश्ण नील, गजरी, तरातेज, वनधनिया आदि ।

रबी फसलों के बहुवर्शीय खरपतवार
            रबी फसलों कें बहुवर्शीय खरपतवारों में मुख्य रुप से घासकुल में दूब घास, चैड़ी पत्ती में हिरनख्ुारी (कन्वूलवुलस आरवेन्सिस), कटीली (सिरसियम आरवेन्स) तथा जंगली पालक (रुमेक्स क्रिसपस) तथा मोथा वर्गीय खरपतवारों में मोथा (साइप्रस रोटन्डस) भी बहुतायत तौर पर पाये जाते हैं।

फसलों में खरपतवारों द्वारा प्रतिस्पर्धात्मक क्रान्तिक अवस्था
विभिन्न फसलों में विभिन्न क्रान्तिक अवस्थायें पायी जाती हंै। जैसे- गेहूँ तथा जौ में 40-45 दिन, दलहनी फसलों में 20-25 दिन और तिलहनी फसलों में 25-45 दिन की अवधि तक की क्रान्तिक अवस्था होती है। अतः इस अवधि तक खरपतवारों का नियंत्रण किया जाना अति आवष्यक होता है।

कैसे करे फसलों में खरपतवारों का नियंत्रण
फसलों में खरपतवारों के प्रबन्धन हेतु फसल प्रक्षेत्र में रोकथाम एवं बचाव के साथ साथ विभिन्न कृशि क्रियायें जैसे षून्य भूपरिश्करण बोआई तकनीकी, पलवार का प्रयोग, सौर्यीकरण, फसल प्रजाति का चयन, बोआई विधि एवं समय, बीज दर एवं कतार से कतार की दूरी, फसल चक्र इत्यादि को फसल पद्धति में अपनाना चाहिए। आच्छादन प्रदान करने वाली फसलों, सिंचाई समय, खाद एवं उर्वरक की मात्रा एवं सही समय पर उपयोग तथा स्टेल सीड बैड तकनीकी के साथ साथ यांन्त्रिक, भौतिक तथा षाकनाषियों के प्रयोग द्वारा भी खरपतवारों पर नियंत्रण पाया जा सकता है। एक ही खरपतवार नियंत्रण विधि को अपनाने के बजाय यदि दो या दो से अधिक विधियों का समन्यवयन किया जाता है तो खरपतवार नियंत्रण प्रक्रिया अधिक सषक्त होने के साथ-साथ पर्यावरण को प्रदूिशत होने से वंचित रखा जा सकता है तथा खाद्य पदार्थ भी अधिक सुरक्षित एवं षुद्ध प्राप्त होगा ।

कृशिगत क्रियाओं द्वारा खरपतवार नियंत्रण

1. फसल चक्रः फसल चक्र पद्धति को अपनाने से खरपतवारों का नियंत्रण तो होता ही है साथ में कीटों एवं बीमारियों की समस्या एवं क्षति स्तर को भी कम किया जा सकता है और मृदा की उर्वरा षक्ति भी बनी रहती है।


2. बोआई तिथि

           खरपतवारों का जमाव उचित वातावरण प्राप्त होने पर ही हो पाता है। अतः यह प्रयास करें कि खरपतवारों के बीजों के जमाव न हो तथा उत्पादित की जाने वाली फसल का जमाव अच्छी प्रकार से हो जाये। जैसे गेहूँ की बोआई यदि 25 अक्टूबर को की जाये तो गेहूं का मामा/गेहूंसा (फेलरिस माइनर) के षुष्क पदार्थ का वजन, सामान्य समय पर बोआई किये जाने की अपेक्षाकृत कम होता हंै और साथ ही फसल की उपज भी ज्यादा प्राप्त होती है।

3. सस्य सघनता
         सस्य सघनता बढ़ाने का मुख्य उद्देष्य खरपतवारों की वृद्धि के लिए कम समय एवं स्थान उपलब्ध कराना होता हैं, जिससे खरपतवारों को उगने के लिए उचित वातावरण न मिल सके। जैसे गेहूँ मंे बीज दर एक समान रखकर यदि पंक्ति से पंक्ति की दूरी कम रखी जाये तो गेहूंॅ का मामा/गेहूंसा (फेलरिस माइनर) की वृद्धि कम होती है साथ ही गेहूँ की उपज में बढ़ोंत्तरी हो जाती है। इसके साथ ही यदि बीज दर को बढ़ाया जाये तो खरपतवारों की सघनता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। जैसे गेहूँ का बीज दर 100 से बढ़ाकर 150 किग्रा0 प्रति हैक्टेयर कर देने पर खरपतवारों के षुष्क पदार्थ में गिरावट आ जाती है और गेहॅँूसा की फसल से प्रतिस्पर्धा कम हो जाती है।

4. बिना जुताई-बुआई तकनीकः- फसल की बोआई खेत को बिना जुताई की जाती है तो खरपतवारों की सघनता पारम्परिक विधि से जुताई कर बोआई करने वाले प्रक्षेत्रों की अपेक्षाकृत कम होता है जिसको बाद में निराई कर या षाकनाषी का प्रयोग कर फसल प्रक्षेत्र को खरपतवारों से मुक्त किया जा सकता है।

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5.स्टेल सीड बेड तकनीकः- इस तकनीकी में खेत तैयारी के पष्चात् सिंचाई की जाती है जिससे मृदा में उपस्थित खरपतवारों का जमाव हो जाये। तद्परान्त उगे हुए खरपतवारों को 1-2 हल्की जुताई कर अथवा अवर्णात्मक षाकनाषी का छिड़काव कर समूल नष्ट किया जा सकता है। इस प्रक्रिया द्वारा कम व्यय के साथ-साथ खरपतवारों पर आसानी से नियंत्रण कर आषातीत उत्पादन प्राप्त किया जा सकता हैं।
षाकनाषी/खरपतवारनाषी रसायनों द्वारा खरपतवार नियंत्रण
निराई की उचित अवस्था पर श्रमिकों का अभाव एवं दिन प्रतिदिन श्रम लागत में वृद्धि के कारण समयानुसार निराई गुड़ाई नहीं सम्पन्न हो पाती है। कभी-कभी यान्त्रिक विधि या किसी अन्य विधि द्वारा खरपतवार नियंत्रण का कार्य ठीक समय पर सम्पन्न नहीं हो पाता । ऐसी परिस्थितियों में षाकनाषी का प्रयोग एक विकल्प है जिसके द्वारा खरपतवार निंयत्रण करने से कम समय तथा कम लागत में समयानुसार नियंत्रण किया जा सकता है। अब वर्तमान में बाजार में ऐसे भी षाकनाषी उपलब्ध हंै जो सभी वर्ग के खरपतवारों का निंयंत्रण करने में सक्षम होते है।

षाकनाषी को अधिक प्रभावी बनाने के मुख्य बिन्दु

 षाकनाषी की सही संस्तुत मात्रा में सही समय पर छिड़काव करें।
 छिड़काव हेतु संस्तुत पानी की मात्रा का ही उपयोग करंे।
 षाकनाषी छिड़काव हेतु फ्लैटफैन या कट नाॅजल को बूम के साथ लगाकर छिड़काव करें।
 भूमि में मिलाये जाने वाले षाकनाषियों 1.0-1.5 इंच गहराई तक भली-भाँति मिला दंे।
 खरपतवार जमाव से पूर्व छिड़काव किये जाने वाले षाकनाषियों के छिड़काव करने के लिए भूमि भुरभुरी एवं समतल होने के साथ साथ भूमि में पर्याप्त नमी का होना आवष्यक हंै।
 खरपतवार जमाव के पष्चात् उपयोग में लाये जाने वाले षाकनाषियों का छिड़काव खरपतवार के 3-5 पत्ती अवस्था तक अवष्य कर देना चाहिए।
 षाकनाषियों का छिड़काव एक समान दबाव पर करना चाहिए जिससे षाकनाषी का वितरण सभी स्थानों में एक समान हो सके।
 षाकनाषी का छिड़काव अत्यधिक प्रकाष तथा हवा की तीव्र गति होने पर नहीं करना चाहिए।
 जमाव पूर्व छिड़काव किये जाने वाले षाकनाषियों में सरफैक्टेन्ट या एडजुवेन्ट को मिलाकर छिड़काव करें जिससे पौध पर दवा का ठहराव एवं अवषोशण ज्यादा होकर खरपतवारों का अच्छा नियंत्रण हो सके।
 षाकनाषी के चयन के पूर्व ही यह निष्चित कर ले कि खरपतवारों की सघनता कम या ज्यादा है, तदनुसार षाकनाषी का चयन करंे।
 प्रयास यह होना चाहिए कि उस प्रकार के षाकनाषी का उपयोग किया जाय जो मिश्रित खरपतवारो पर ज्यादा कारगर हो।
 एक ही प्रकार के षाकनाषी का प्रयोग लगातार न कर 2 वर्श के अन्तराल पर षाकनाषी को बदल देना चाहिए।
 यदि 4 घंटे के अन्दर वर्शा होने की सम्भावना हो तो षाकनाषी का छिड़काव नहीं करना चाहिए।

षाकनाषियों का प्रयोग करते समय सावधानियाॅ
 हवाओं के प्रतिकूल रुख की ओर कभी छिड़काव न करे ताकि रसायन षरीर पर न पड़े।
 षाकनाषियों का प्रयोग करते समय रक्षात्मक वस्त्र, गमबूट, दस्ताने, धूप का चष्मा, मास्क आदि का इस्तेमाल अवष्य करना चाहिए।
 खाली डिब्बों को जमीन में दबा देना चाहिए।
 छिड़काव करने के बाद अपने हाथ, मुॅह तथा आॅखों को साबुन से अच्छी तरह धो लेना चाहिए।
 छिड़काव के समय बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू, या अन्य चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।
 खरपतवारनाषियों को बच्चों की पहुॅच से दूर रखना चाहिए।
 गैर चयनित षाकनाषियों का इस्तेमाल करते समय स्प्रेयर के नाॅजल पर सुरक्षात्मक षील्ड (हुड) लगाकर ही खरपतवारो का छिड़काव करना चाहिए।
 छिड़काव के पूर्व तथा छिड़काव के बाद स्प्रेयर को अच्छी तरह से साफ कर लेना चाहिए।


समन्वित खरपतवार नियंत्रण
              विभिन्न तरीके अपनाकर फसल प्रक्षेत्र से खरपतवार के समुचित एवं कारगर नियंत्रण के लिए यह आवष्यक है कि किसी एक विधि को न अपनाकर समन्वित खरपतवार नियंत्रण की विभिन्न विधियो का समन्वयन किया जाए जैसेः भूमि की तैयारी, स्टेल सीड बेड तकनीकी, निराई-गुड़ाई एवं षाकनाषियों ेेका प्रयोग। खरपतवारों के प्रकार एवं उनकी सघनता भूमि की तैयारी के अनुरुप बदलता रहता है। अतः समन्वयन प्रक्रिया को खरपतवारों की सघनता एवं उनके प्रकार को देखकर अपनाना चाहिए।
              खरपतवारों के उचित नियंत्रण के लिए फसल की बुआई से लेकर कटाई तक खेत की तैयारी, सस्य क्रियाओं, यांत्रिक विधि द्वारा निराई एवं षाकनाष्यिों के प्रयोग आदि को अपनाना चाहिए। खरपतवार नियंत्रण के लिए उपलब्ध सभी विधियों को समन्वित रूप से अपनाकर खरपतवारों की वृद्धि एवं उनके प्रकोप पर अंकुष लगाया जा सकता हैं। बुआई के समय फसल का बीज खरपतवारों के बीजों से मुक्त होना चाहिए। खरीफ ऋतु में बुआई से पूर्व पलेवा कर खेत को खुला छोड़ देने एवं किसी अवर्णात्मक षाकनाषी के प्रयोग द्वारा अथवा कशर्ण विधि द्वारा उगे हुए खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सकता है। समन्वित खरपतवार नियंत्रण के लिए उचित सस्य क्रियाओं के साथ बुआई के तुरन्त बाद षाकनाषियों के प्रयोग एवं 30-35 दिन बुआई के पश्चात् प्रयोग होने वाले षाकनाषियों के साथ मिट्टी चढ़ाने से खरपतवारों को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है।

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