मूँग
उन्नत किस्में
प्रजाति | पकने की अवधि (दिन) | औसत उपज कु/है. |
पर्वतीय एवं भावर क्षेत्र | ||
पन्त मूँग 2 | 65-70 | 8-11 |
नरेन्द्र मूँग 1 | 65-70 | 12-15 |
पन्त मूँग 4 | 65-70 | 12-15 |
पन्त मूँग 5(खरीफ एवं जायद) | 60-65 | 12-15 |
मैदानी क्षेत्र (उपरोक्त के अतिरिक्त) | ||
पी. डी. एम. 11 | 65-70 | 10-12 |
सम्राट | 60-65 | 12-15 |
मालवीय जनचेतना | 65-70 | 12-15 |
मालवीय जागृति | 65-70 | 12-15 |
सत्या (एम एच 2-15) | 65-70 | 12-15 |
मालवीय जनप्रिया | 65-70 | 12-15 |
बुवाई का समय
पर्वतीय क्षेत्रों में मूॅग की बुवाई का उपयुक्त समय घाटियों में जून का द्वितीय पखवाड़ा है। विलम्ब से बुवाई करने पर उपज में कमी आ जाती है। तराई-भावर एवं मैदानी क्षेत्रों में मूॅग की बुवाई का सर्वोत्तम समय जुलाई के अन्तिम सप्ताह से अगस्त का दूसरा सप्ताह है। जायद में बुवाई का उचित समय मार्च के द्वितीय पखवाड़ें से 10 अप्रैल तक है। तराई क्षेत्र में मूंग की बुवाई मार्च के अंत तक कर लेनी चाहिए।
बुवाई की विधि
बुवाई कूॅड में हल के पीछे करें। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30-45 से.मी. होनी चाहिए। बुवाई 3-4 से.मी. गहरी होनी चाहिए।
बीज की मात्राः खरीफ में 12-15 कि.ग्रा., जायद में 25-30 कि.ग्रा.
उर्वरकों का प्रयोगः उर्द की भाॅति करें ।
बीज उपचार
थीरम 2 ग्रा. एवं कार्बेन्डाजिम 1.0 ग्रा./ कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करके बीज बोयें ।
राइजोबियम से बीजोपचार
उर्द की भाँति ही मूँग के बीज को उपयुक्त राइजोबियम कल्चर से उपचारित करना चाहिए।
निराई-गुड़ाईः उर्द की भाँति करें ।
फसल सुरक्षाः कीटों तथा बीमारियों की रोकथाम उर्द की भाँति करें।
उपज
संस्तुत सघन पद्धतियाँ अपनाकर 10-15 कु./है. उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।