मटर
मटर की फसल दाल के लिए उगायी जाती है। सूखी मटर को दलकर दाल तथा सूप बनाने के काम में लाते हैं। भूसंरक्षण की दृष्टि से भी यह महत्वपूर्ण फसल है।
भूमि
दोमट तथा हल्की भूमि अधिक उपयुक्त है।
उन्नत किस्में
मैदानी क्षेत्र- बौनी प्रजातिः के. पी. एम. आर. 522, अपर्णा, मालवीय मटर 15, डी. डी. आर. 23, पंत मटर 13, पंत मटर 14, पंत मटर 25, पंत मटर 74
सामान्य प्रजाति: पंत मटर 42
पर्वतीय क्षेत्र- बौनी प्रजातिः पंत मटर 13, पंत मटर 14, आई.पी.एफ. डी. 1-10
सामान्य प्रजातिः वी.एल. मटर 40, वी. एल. मटर 42
बुवाई का समय
तराई व भावर एवं मैदानी क्षेत्र- अक्टूबर के मध्य से नवम्बर के मध्य तक।
पर्वतीय क्षेत्र - अक्टूबर के मध्य से नवम्बर के प्रथम सप्ताह तक।
बीज की मात्रा
सामान्य प्रजातियाॅ- 80-100 कि.ग्रा./हैक्टर।
बौनी प्रजातियाॅ - 125 कि.ग्रा./हैक्टर।
बुवाई की विधि
सामान्य प्रजातियाॅ- हल के पीछे 30 से.मी. की दूरी पर।
बौनी प्रजाति - हल के पीछे 20-25 से.मी. की दूरी पर।
बीजोपचार
उपयुक्त राइजोबियम कल्चर से चने के भाँति बीजोपचार कर बुवाई करें।
खाद एवं उर्वरक
मृदा परीक्षण के अनुसार अथवा सभी प्रजातियों के लिए 20 कि.ग्रा. नत्रजन, 60 कि.ग्रा. फास्फोरस, 40 कि.ग्रा. पोटाश, 30 कि.ग्रा. गन्धक तथा 60 कुन्तल गोबर की खाद प्रति हैक्टर बुवाई से पूर्व मिट्टी में मिला दें।
निराई-गुड़ाई-खरपतवार नियंत्रण
चने की भांति करें।
सिंचाई
चने की भाॅति फूल आने से पहले तथा दाना भरते समय आवश्यकतानुसार सिंचाई करें।
फसल सुरक्षा
कीट नियंत्रण
1. तनाछेदक कीट- अक्टूबर में बुवाई न करें। खड़ी फसल में प्रकोप होने पर उसकी रोकथाम के लिए इमीडाक्लोप्रिड 3 ग्राम या थायोमेथोक्जाम 2 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करके बुवाई करें।
2. पत्ती में सुरंग बनाने वाले कीट - डायमेथोएट 30 ई.सी. या मिथाइल ओडिमेटान 25 ई.सी. की प्रति हैक्टर 1.00 लीटर मात्रा 600-800 ली. पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
3. फलीछेदक कीट - मोनोक्रोटोफास 36 ई.सी. 750 मि.ली. मात्रा 500-600 ली. पानी में मिलाकर प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव करें अथवा मैलाथियान 5 प्रतिशत चूर्ण का 20 किलोग्राम प्रति हैक्टर की दर से बुरकाव करें।
रोग नियंत्रण
मटर का रतुआ (गेरूई) रोग |
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बीज शोधन - बीज जनित रोग से बचाव के लिए थाइरम 2.5 ग्राम या जिंक मैगनीज कार्बामेट 3 ग्राम अथवा कार्बेन्डाजिम या बेनोमिल 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज बोने से पूर्व शोधन कर लेना चाहिए। बीज शोधन के बाद राइजोवियम कल्चर द्वारा भी बीज का उपचार करना चाहिए।
खड़ी फसल पर रोग नियंत्रण
1. बुकनी रोग - रचना, अपर्णा, पंत पी. 5 आदि अवरोधी किस्मों का प्रयोग किया जाये। 3 कि.ग्रा. घुलनशील गंधक या 600 मि.ली. डाइनोकेप 48 ई.सी. या 500 ग्राम कार्बान्डाजिम या 500 मि.ली. ट्राइडोमार्फ 80 ई.सी. दवा को 600-800 लीटर पानी में घोलकर लक्षण के आते ही 10-12 दिन के अन्तर पर दो बार छिड़काव करें।
2. रतुआ रोग - 2.0 कि.ग्रा. मैंकोजेब अथवा 500 मि.ली. ट्राइडोमार्फ 80 ई.सी. प्रति हैक्टर या थायोफिनेट मिथाइल 70 डब्लू.पी. का 0.15 प्रतिशत घोल बनाकर छिड़काव करें।
3. उकठा रोग -दीर्घकालीन फसलचक्र अपनायें तथा चने की भांति बीज शोधन करके बुवाई करें।
4. तुलासिता रोग -इसकी रोकथाम रतुआ रोग की भाॅति करें।
5. सफेद विगलन- यह रोग पर्वतीय क्षेत्र में व्यापक रुप से फैल रहा है। पूरा पौधा सफेद रंग का होकर मर जाता है। इसके उपचार के लिए फसल की बुवाई नवम्बर के प्रथम सप्ताह के बाद करें। दीर्घकालीन फसलचक्र अपनायें। जनवरी माह में जब लक्षण दिखाई दें तब कार्बेन्डाजिम का 0.05 प्रतिशत या घुलनशील गन्धक का 0.3 प्रतिशत घोल बनाकर 15 दिन के अन्तराल पर आवश्यकतानुसार छिड़काव करें।
6. झुलसा रोग- 2.5 ग्राम थाइरम नामक दवा से प्रति कि.ग्रा. बीज उपचारित करना चाहिए और बाद में मेन्कोजेब का 0.2 प्रतिशत घोल बनाकर छिड़काव करें।
7. बीज विगलन- बीज बोने से पूर्व थाइरम 2.5ग्राम अथवा कैप्टान 2.0 ग्राम या बेनलेट तथा थाइरम का 2.5 ग्राम या बेनलेट तथा कैप्टान का 1.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार करें।
कटाई एवं उपज
फसल पूर्ण पकने पर कटाई करके मड़ाई कर लें तथा दानों को अच्छी तरह सुखाकर भण्डारण करें। उपरोक्त प्रकार से खेती करके मटर से 20-25 कुन्तल प्रति हैक्टर उपज प्राप्त की जा सकती है।