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मंडुवा

       मंडुवा पर्वतीय क्षेत्रों की असिंचित खरीफ फसल प्रणाली में धान के बाद दूसरी मुख्य फसल है। इस फसल में अन्य फसलों की तुलना में प्रतिकूल मौसम को
सहन करने की अभूतपूर्व सामथ्र्य है। मंडुवा अन्य फसलों जैसे धान, मक्का आदि से ज्यादा गुणवत्ता युक्त है इसमें प्रोटीन धान से अधिक तथा कैल्शियम की मात्रा धान और गेहूँ से क्रमशः 35 तथा 8 गुनी होती है। मधुमेह के रोगियों को इसका नियमित सेवन लाभकारी बताया गया है। मंडुवा पर्वतीय क्षेत्रों में दानों एवं चारे की आवश्यकता की पूर्ति के लिए उगायी जाती है।
उन्नत किस्में

        पर्वतीय क्षेत्रों की विभिन्न ऊँचाई वाले क्षेत्रों के अनुसार ही मंडुवा की किस्मों का चुनाव किया जाना चाहिए। कम व मध्यम ऊँचाई वाले क्षेत्रों में मध्य
अवधि की किस्मों एवं सभी ऊँचाई वाले क्षेत्रों में अल्पकालीन प्रजातियों को लगाना चाहिए।

अल्प अवधि वाली किस्में (95-100 दिन)
       पंत मंडुवा-3, वी.एल. मंडुवा-204 एवं वी.एल. मंडुवा-146

मध्यम अवधि वाली किस्में (105-115 दिन)
          पी0आर0एम0-1, पी0आर0एम0-2, पी.ई.एस.-176, पी.ई.एस.-110, वी.एल.-149, वी. एल. मंडुवा 315 एवं वी.एल. मंडुवा 324
पर्वतीय परिसर रानीचैरी द्वारा विकसित पी.आर.एम. 1 किस्म से दाने के साथ-साथ अधिक चारा भी प्राप्त कर सकते हैं।

बुवाई का समय
          पर्वतीय क्षेत्रों में अलग-अलग ऊँचाई वाले क्षेत्रों में विभिन्न समय पर बुवाई की जाती है।

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बीज की मात्रा एवं बुवाई की विधि

              जायें तो खड़ी फसल से खरपतवार निकालने में आसानी रहती है। सीधी बुवाई के लगभग 1 माह बाद पौधों की छंटनी कर पौधे से पौधे के बीच की दूरी 10.0 से.मी. रखनी चाहिए। मंडुवा को रोपाई विधि द्वारा (20-25 दिन की पौध होने पर) लगा सकते हैं। इसे 20ग10 से.मी. की दूरी पर बोये। पौधशाला में बीज (4-5 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर) मई के अन्त से जून के प्रथम सप्ताह तक लगाते हैं। मंडुवा की रोपाई जून के तीसरे सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक कर सकते हैं।

उर्वरक का प्रयोग
           उर्वरकों का प्रयोग सदैव मृदा परीक्षण के आधार पर ही किया जाना चाहिए। अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए 40 कि.ग्रा. नत्रजन तथा 20 कि.ग्रा. फास्फोरस की प्रति हैक्टर (क्रमशः 800 व 400 ग्रा. प्रति नाली) आवश्यकता पड़ती है। नत्रजन की आधी तथा फास्फोरस की सम्पूर्ण मात्रा को जुताई के साथ भूमि में डालना चाहिए। नत्रजन का शेष भाग पौध जमाव के लगभग 3 सप्ताह अर्थात् प्रथम निराई के शीघ्र बाद प्रयोग करना चाहिए। गोबर अथवा कम्पोस्ट खाद की लगभग 7.5 टन प्रति हैक्टर (2 कु. प्रति नाली) मात्रा का प्रयोग अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए लाभदायक पाया गया है।

खरपतवार नियंत्रण
          निराई-गुड़ाई करके खरपतवारों को यथाशीघ्र निकाल देना चाहिए। खरपतवार नियंत्रण के लिए अंकुरण होने के 10-20 दिन के बाद पहली निराई तथा दूसरी निराई 30-35 दिन के बाद करनी चाहिए।
खरपतवारों के रासायनिक नियंत्रण हेतु बुवाई के तुरन्त बाद 0.75 कि.गा. आइसोप्रोट्यूरान खरपतवारनाशी प्रति हैक्टर का छिड़काव करने से खरपतवारों का नियंत्रण हो जाता है। चैड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के नियंत्रण के लिए बुवाई के लगभग तीन सप्ताह बाद 2, 4-डी (650 ग्रा./हैक्टर या 13 ग्रा./नाली) का छिड़काव करना चाहिए।

कीट नियंत्रण
             इस फसल में तना बेधक कीट क्षति पहुँचाता है। इसकी रोकथाम के लिए फीप्रोनिल 5 एस.सी. 1 लीटर या कारटाप हाइड्रोक्लोराइड 50 डब्लू.पी. 600 ग्राम या क्लोरपायरीफास 20 ई.सी. 2.5 लीटर 500-600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टर छिड़काव करें।

रोग नियंत्रण

मंडुवा का झोंका रोग

ग्रीवा झोंका

पर्णीय झोंका
बली का झोंका
मंडुवा का सर्कोस्पोरा पर्ण चित्ती रोग
         मंडुवा की फसल में झोंका रोग के नियंत्रण हेतु रोगरोधी प्रजाति वी.एल. 149 को बोयें। बुवाई से पूर्व बीजों को 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम द्वारा प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करें तथा खड़ी फसल में कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम/लीटर पानी की दर से दो छिड़काव (पहला पौधों में 50 प्रतिशत बालियाँ बनने तथा दूसरा इसके 10 दिन के बाद) करें। रोग के जैविक नियंत्रण हेतु बीजों को 10 ग्राम स्यूडोमेनास फ्लोरेसेंस से प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करें तथा खड़ी फसल में 10 ग्राम स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर दो छिड़काव (पहला 50 प्रतिशत बालियाँ बनने तथा दूसरा 10 दिन बाद) करें। झोंका रोग प्रतिरोधी प्रजाति वी.एल. 149 को बोयें।
सर्कोस्पोरा पर्ण चित्ती के नियंत्रण हेतु कार्बोन्डाजिम 1 ग्राम/लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।
उपज
        मंडुवा का उत्पादन 15-18 कु./हैक्टर (30-36 कि.ग्रा. प्रति नाली) तक लिया जा सकता है।