काकुन (कौणी, कंगनी)
पर्वतीय क्षेत्रों में उगाये जाने वाले मोटे अनाजों में काकुन का तीसरा स्थान है। यहाँ इसे कौणी के नाम से जाना जाता है। इसकी खेती मैदानी तथा समुद्र तल से 2200 मीटर की ऊँचाई तक की जाती है। अधिकांशतः काकुन को झंगोरा के साथ मिश्रित खेती के रूप में बोया जाता है। कौणी के दानों में 12.3 प्रतिशत प्रोटीन होती है जो कि गेहूँ तथा चावल से अधिक है। इसके दानों में प्रचुर मात्रा में विटामिन तथा आवश्यक अमीनों अम्ल पायें जाते हैं जो अन्य धान्य फसलों में बहुत कम होते हैं।
उन्नत किस्में
पी.आर.के.-1 (हिमाद्रि): यह पंतनगर विश्वविद्यालय के पर्वतीय परिसर, रानीचैरी द्वारा विकसित की गई है जो कि एक अगेती किस्म है। यह किस्म पर्वतीय क्षेत्रों में 1500-2200 मी. की ऊँचाई तक सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है। एक हैक्टर भूमि से 18-20 कुन्तल उपज मिलती है। इसके पौधों की ऊँचाई 90-100 से.मी. होती है और दाने पीलापन लिये हुए भूरे रंग के होते हैं। इसकी फसल ऊँची पहाडि़यों पर भी लगभग 90-105 दिन में पक जाती है। इस किस्म में झोंका (ब्लास्ट) तथा पर्णीय झुलसा बीमारियों का प्रकोप कम होता है।
पी.एस.-4: यह प्रजाति पंतनगर विश्वविद्यालय द्वारा मैदानी क्षेत्रों के लिए विकसित की गयी है। यह प्रजाति तराई क्षेत्र में 83-85 दिन में पक जाती है तथा इसकी उपज क्षमता 17-18 कु./हैक्टर पायी गयी है।
बोने का समय
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बीज की मात्रा तथा बुवाई की विधि
लाइन में बुवाई 8-10 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर (160-200 ग्राम प्रति नाली) छिटकवा विधि 12 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर (240 ग्राम प्रति नाली)
लाइन में बुवाई करने पर लाइन से लाइन की दूरी 25 से.मी. रखनी चाहिए तथा अंकुरण होने के 15-20 दिन बाद पौधों की इस प्रकार छँटाई करनी चाहिए कि उनके बीच की दूरी 10 से.मी. रह जाये।
खाद एवं उर्वरक की मात्रा
उत्तराखण्ड में 40 कि.ग्रा. नत्रजन तथा 20 कि.ग्रा. फास्फोरस प्रति हैक्टर (800 ग्रा. नत्रजन एवं 400 ग्रा. फास्फोरस प्रति नाली) की संस्तुति की गई है। फास्फोरस की पूरी एवं नत्रजन की आधी मात्रा बुवाई के समय तथा शेष फूल खिलते समय प्रयोग करना लाभदायक होता है। जैविक दशाओं में खेत की जुताई से पहले 5-6 टन गोबर या कम्पोस्ट खाद बिखेर देनी चाहिए और जुताई करके भूमि में खाद अच्छी तरह मिला देनी चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार नियंत्रण हेतु अंकुरण होने के 15-20 दिन के बाद पहली निराई तथा दूसरी निराई 30-35 दिन के बाद करनी चाहिए।
खरपतवारों के रासायनिक नियंत्रण हेतु बुवाई के तुरन्त बाद 0.75 कि.गा. आइसोप्रोट्यूरान खरपतवारनाशी प्रति हैक्टर का छिड़काव करने से खरपतवारों का नियंत्रण हो जाता है। चैड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के नियंत्रण के लिए बुवाई के लगभग तीन सप्ताह बाद 2, 4-डी (650 ग्रा./हैक्टर या 13 ग्रा./नाली) का छिड़काव करना चाहिए।
कीट नियंत्रणः तना की मक्खी इस फसल की मुख्य समस्या है। अतः इसकी रोकथाम के लिए बुवाई के समय क्लोरपायरीफास 1 लीटर मात्रा को पर्याप्त रेत या भुरभुरी मिट्टी में मिलाकर प्रति हैक्टर की दर से कूँडों में प्रयोग करें।
रोग नियंत्रणः
काकुन या कंगनी का झोंका रोग |
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उपज
20-25 कु./हैक्टर (40-50 कि.ग्रा. प्रति नाली) दाना तथा 100 कुन्तल चारा प्रति हैक्टर प्राप्त होता है।