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गहत (कुल्थी)

      उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में गहत की खेती खरीफ में दलहनी फसल के रूप में की जाती है तथा औषधीय गुण के कारण इसकी खेती पर विशेष बल दिया जाने लगा है।

उन्नत किस्में

बुवाई का समय
      इसकी बुवाई जून के प्रथम पखवाड़े में की जाती है।

बीज की मात्रा एवं बीज शोधन
               40-50 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर (800-1000 ग्राम/नाली) यदि बुवाई लाइन में की जाती है। बीज की बुवाई से पूर्व थीरम 2.5 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करना चाहिए।

बुवाई की विधि
            लाइन से लाइन की दूरी 30-35 से.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 से.मी. होनी चाहिए ।

उर्वरक
         नत्रजन, फास्फोरस तथा पोटाश की क्रमशः 20ः40ः20 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर (0.4ः0.8ः0.4 कि.ग्रा./नाली) मात्रा प्रयोग करने पर उपज अच्छी प्राप्त होती है।

निराई-गुड़ाई
               पहली निराई फसल की बुवाई के 20-25 दिन, दूसरी 40-50 दिन बाद करनी चाहिए। निराई-गुड़ाई की संख्या खरपतवार पर निर्भर करती है।

फसल सुरक्षा
       सफेद सड़न रोग- इस रोग के निदान हेतु कार्बेन्डाजिम के 0.1 प्रति घोल का छिड़काव फसल पर लक्षण दिखाई देने के पश्चात् तुरन्त किया जाना चाहिए।
       श्याम वर्ण रोग- इस रोग के निदान हेतु मैन्कोजेब के 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव लक्षण दिखाई देने पर करना चाहिए।

कटाई
       फसल अक्टूबर के दूसरे पखवाड़े में कटाई के लिए तैयार हो जाती है।

भण्डारण - फसल की अच्छी तरह से सफाई करके भण्डारण किया जाना चाहिए।

उपज
    सामयिक वर्षा तथा उचित देख-रेख मिलने पर इस फसल की पैदावार 15-20 कुन्तल प्रति हैक्टर (30 से 40 कि.ग्रा./नाली) तक प्राप्त की जा सकती है।